Saturday, March 19, 2011

600 की टिकट मिली 7500 में, सचिन ने करवाया पैसा वसूल

टीम इंडिया का मैच हो और टिकट के लिए मारा-मारी ना हो ये बात नामुमकिन सी है। नागपुर के विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम में भारत और दक्षिण अफ्रीका मैच से पहले भी कुछ ऐसा ही देखा गया। 300 रुपए की टिकट 4000 रुपए में और 600 रुपए वाली टिकट 7500 रुपए में मिल रही थी, लेकिन 12 गुना ज्यादा पैसे देकर भी जिसने टिकट पा लिया वो आज खुद को धन्य महसूस कर रहा है।

वीसीए स्टेडियम के बाहर सुबह 9 बजे से ही क्रिकेट के दीवानों का जमावड़ा लगा हुआ था। कोई इंडिया-इंडिया चिल्ला रहा था, तो कोई सचिन-सचिन के नारे लगा रहा था। कुछ गोरे साउथ अफ्रीका को भी चियर करने में लगे थे। लेकिन शायद संख्या कम होने की वजह से उनकी आवाज दब जा रही थी।

विदेशियों ने भी बेचे ब्लैक में टिकट

स्टेडियम के बाहर स्थानीय लोग पहले से जुटाए अतिरिक्त टिकटों को महंगे में बेचते हुए नजर आए। 600 रुपए का टिकट कोई 5000 रुपए में बेच रहा था तो कोई इसमें ईमानदारी दिखाते हुए इन्हीं टिकटों को 3500 रुपए में देने को तैयार था।

यहां तक तो ठीक था, लेकिन हद तो तब हो गई जब तीन दक्षिण अफ्रीकी टिकट की कालाबाजारी करते हुए नजर आए। इस ग्रुप में दो पुरुष और एक महिला शामिल थीं। इन्होंने तो लूटमारी की इंतहां पार कर दी। 600 रुपए का टिकट 7500 रुपए में। ऐसे दाम सुनकर तो लोगों के होश ही उड़ गए।

जब वहां तैनात पुलिसवाले ने उन्हें रोकने की कोशिश तो वो तेजी से वहां से निकल गए।

पर हो गए पैसे वसूल

लोगों ने भले ही 600 की टिकट 12 गुना की कीमत में खरीदी हो, लेकिन मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर ने शानदार बल्लेबाजी कर उन सबके पैसे वसूल करवा दिए। सचिन और सहवाग ने मिलकर इस विश्वकप की पहली भारतीय शतकीय साझेदारी की। दोनों बल्लेबाजों ने प्रोटीज गेंदबाजों की खबर लेते हुए अर्धशतक जमाए।

सचिन-सहवाग की बल्लेबाजी देखने के बाद हर दर्शक के मुंह से एक ही बात निकल रही था, बॉस, ये तो टोटल पैसा वसूल है।

क्या मतलब है 600 रुपए की टिकट का?

वीसीए स्टेडियम में सीटों की कीमत उनकी पोजीशन के मुताबिक तय की गई है। गद्दीदार सीट पर बैठने के लिए दर्शकों को आधिकारिक मूल्य के अनुसार 2000 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक चुकाने पड़े हैं। वीवीआईपी बॉक्स, कॉर्पोरेट बॉक्स और प्रेसिडेंट बॉक्स के पास वाली सीटें गद्दीवाली हैं।

आम जनता के लिए फाइबर वाली कुर्सियों की व्यवस्था है। इसमें सबसे आगे वाली पंक्ति, जहां से खिलाड़ी थोड़े साफ नजर आते हैं, उसकी कीमत 600 रुपए रखी गई है। सबसे पीछे वाली पंक्ति की कीमत 300 रुपए रखी गई है।

एक फ्लोर ऊपर के लिए सीटों की कीमत 1000 रुपए है। महंगी सीटों के लिए वीसीए ने कॉम्प्लिमेंट्री भोजन की भी व्यवस्था की है।

विस्फोटक टेलर की गिल्लियां बिखेर चुका है विदर्भ का छोरा

नागपुर. आपने ब्रेट ली और शोएब अख्तर को स्टंप को चीर देने वाली गेंदबाजी रफ्तार से गेंदबाजी करते हुए तो देखा होगा, लेकिन विदर्भ के छोटे कस्बों में भी ऐसी प्रतिभाएं पल रही हैं जो कि दिग्गज बल्लेबाजों के छक्के छुड़ा सकती हैं। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और सचिन तेंडुलकर को बल्लेबाजी का अभ्यास करवा रहे विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के चार गेंदबाजों से बात की दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने।


वर्ल्डकप के दौरान टीमों को नेट में अभ्यास करवाने के लिए विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन ने 36 खिलाड़ियों को नियुक्त कर रखा है। इनमें से 20 नागपुर के हैं और शेष 16 आस पास के देहाती इलाकों से आए हुए हैं। आइए एक नजर डालते हैं इनके एक छोटे से परिचय पर-


आनंद सिंह


उम्र 22 साल


निवासी माजरी गांव चंद्रपुर जिला


खूबी ऑफ स्पिनर


छोटी सी उम्र में आनंद के हौसले बुलंद हैं। उन्होंने सोच रखा हैं कि देश का नंबर वन ऑफ स्पिनर बनकर ही दम लेना है। विदर्भ के लिए रणजी खेलने के प्रयासों में जुटे आनंद हरभजन सिं को अपना आदर्श मानते हैं। क्रिकेट में करियर बनाने की ठाने हुए आनंद अभी बीबीए कर रहे हैं।


रामेश्वर सोनुने


उम्र 20 साल


निवासी चिखली गांव जिला बुलढाना


रामेश्वर, जैसा नाम वैसा ही काम है इस बाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज का। इनकी खूबी ये है कि 20 साल की छोटी सी उम्र में ये न्यूजीलैंड के बल्लेबाज रोस टेलर, जिनको काबू करने में पाकिस्तान के सबसे तेज गेंदबाज शोएब अख्तर बुरी तरह से नाकाम रहे थे, उनको नेट प्रैक्टिस के दौरान दो बार क्लीन बोल्ड कर चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मुकाबले से पहले रामेश्वर ने कप्तान धोनी और हरभजन को भी अपने बाउंसरों का स्वाद चखाया है।


चरन सिंह बोराडे


उम्र 23 साल


निवासी खामगांव बुलढाणा जिला


दिखने में बैंड बाजा बारात मूवी के रनबीर सिंह लगने वाले चरन सिंह को युवा जहीर खान कहा जाए तो गलत नहीं होगा। चरन 150 किमी की रफ्तार से गेंद डाल लेते हैं। अपनी शानदार गेंदबाजी से वो इंग्लैंड के इयान बेल को लगभग घायल कर चुके हैं। चरन की गेंद खेलने के बाद बेल आगे का अभ्यास नहीं कर पाए थे। उनकी गेंदबाजी देखने के बाद इंग्लैंड के कोच एंडी फ्लावर ने उनसे पूछा था, क्या तुम टीम इंडिया के लिए खेल चुके हो, या आईपीएल में खेलते हो। बहुत बढ़िया गेंद डालते हो। इतना ही नहीं, न्यूजीलैंड के कोच जॉन राइट ने चरन की गेंदबाजी से खुश होकर उन्हें एक गेंद भी उपहार में दी थी।


सुनील राथौड़


उम्र 22 साल


निवासी चिखली गांव बुलढाणा जिला


सीधे हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज टीम इंडिया के मुनाफ पटेल से लगते हैं। इनकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अपनी गेंदबाजी से ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग की वाहवाही लूटने वाले सुनील की माली हालत कुछ खास नहीं है। वो इस समय बीफार्मा कर रहे हैं। अपने बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, हमारे घर की मासिक आमदनी महज 3000 रुपए है। इसमें से आधे से ज्यादा तो मेरी पढ़ाई पर खर्च हो जाता है। क्रिकेट एक महंगा खेल है लेकिन मैं इसे छोड़ना नही चाहता। मेरी ख्वाहिश है कि मैं एक दिन टीम इंडिया का हिस्सा बनूं।


कोच को है विश्वास चमकेंगे ये चार सितारे


इन चारों जोशीले खिलाड़ियों के कोच रहीम पठान को भरोसा है कि ये लड़के एक दिन बड़ा नाम कमाएंगे। कोच पठान का कहना है कि वो इन्हें टीम इंडिया के भविष्य के रूप में देखते हैं। पिछले कुछ समय से बीसीसीआई ने अपनी चयन की तीनि में परिवर्तन किया है। अब वो दूर देहात में पनप रही प्रतिभा को मौका देना चाहते हैं। ऐसे में इन चारों के अवसर बढ़ जाएंगे।


क्या हैं संभावनाएं


क्रिकेट एक कठिन खेल है। इसमें नेशनल टीम का हिस्सा बन पाना बहुत कठिन है। लेकिन इन चारों को विश्वास है कि उनका ये ख्वाब जरूर पूरा होगा। इन चार में से चरन सिंह और रामेश्वर को विदर्भ के रणजी टीम कोच विलक्ष्ण कुलकर्णी ने भरोसा जताया है कि इन दोनों को संभावित खिलाड़ियों में रखा गया है। सचिन तेंडुलकर को अपना दिल मानने वाले ये चार स्टार अपने मन में कभी नकारात्मक भाव को नहीं आने देते। ये मेहनत कर रहे हैं और हम दुआ करते हैं कि ये जरूर सफल हों।

गाली-गलौंज ने क्रिकेट को हराया

खेल के मैदान पर खिलाड़ी अपनी सफलता पर बहुत उत्साहित हो जाते हैं। इस जोश में वो विपक्षी खिलाड़ी के साथ गाली-गलौंज करने से भी नहीं चूकते। खिलाड़ियों के बीच मैदान पर होती तूतू-मैंमैं से दर्शकों को भी बड़ा आनंद आता है, लेकिन कहीं ना कहीं इससे एक महत्वपूर्ण चीज आहत हो जाती है - खेल भावना।


इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठित एशेज सीरीज में कई ऐसे किस्से सामने आए। ब्रिसबेन टेस्ट में मिली हार से बौखलाए मेजबान ने स्लेजिंग को अपना हथियार बनाकर तीसरा मुकाबला 267 रन से जीत लिया। छींटाकशी सिर्फ कंगारुओं की तरफ से नहीं बल्कि इंग्लैंड के सभ्य खिलाड़ियों की ओर से भी होती रही।


इंग्लैंड के गेंदबाज जेम्स एंडरसन ने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज मिशेल जॉनसन पर लगातार टीका-टिप्पणियां की। इसका जवाब जॉनसन ने पहले अपने बल्ले और उसके बाद अपनी कहर बरपाती गेंदों से दिया। जॉनसन को सिर्फ विकेट लेकर ही चैन नहीं मिला, बल्कि उन्होंने अपने शब्दों के बाण से भी अंग्रेजी बल्लेबाजों को घायल किया।


इस मैच से ये सवाल उठता है कि क्या भद्रजनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट में इस प्रकार की छींटाकशी कितनी सही है।


पुराना है फार्मुला


ये पहली बार नहीं है जब ऑस्ट्रेलिया ने विपक्षी खिलाड़ियों का मनोबल गिराने के लिए जुबानी रणनीति का सहारा लिया है। हाल ही में भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भी कंगारुओं की भिड़ंत गेंदबाज जहीर खान से हुई थी। गौतम गंभीर और ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी शेन वाटसन के बीच भी जुबानी जंग हो चुकी है।


यही रणनीति इंग्लैंड के खिलाड़ियों के मास्टर प्लान में भी शामिल रहती है। भारत के इंग्लैंड दौरे के दौरान स्लिप में खड़े केविन पीटरसन ने जहीर खान की ओर जैली बीन फेंककर उनका ध्यान बटाने की कोशिश की थी। ये किस्सा बहुत मशहूर हुआ था। नतीजा ये था कि जहीर सीरीज के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज के रूप में उभरे थे।


क्या कहना है जनता का


क्रिकेट में स्लेजिंग पर खेल प्रेमियों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ का मानना है कि ये खेल का हिस्सा है और सबको इसे स्वीकार करना चाहिए। जबकि कुछ का कहना है कि टिप्पणी कर विपक्षी खिलाड़ी का ध्यान बंटाना खेल भावना के खिलाफ है। यदि आपको जीतना है तो अच्छा खेल दिखाना होगा, गाली-गलौंज इसका विकल्प नहीं हो सकता।


सचिन से सीखो


एशेज सीरीज में खिलाड़ियों की छींटाकशी पर गुस्साए लोगों ने क्रिकेटरों को मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर से सीख लेने की हिदायत दी है। क्रिकेटप्रेमियों का मानना है कि सचिन कभी इस प्रकार के विवाद में शरीक नहीं हुए, और इसलिए वो एक महान खिलाड़ी हैं। चाहे मैदान और या उसके बाहर, तेंडुलकर की शालीनता सबका दिल जीत लेती है।


Thursday, March 17, 2011

काश मैं क्रिकेटर होती...

भारत में खेलों की स्थिति कैसी है इस बात से हर कोई वाकिफ है। आज परिस्थितियां कुछ ऐसी हो गई हैं कि हर खिलाड़ी क्रिकेट के अलावा कोई भी और खेल में करियर बनाने के बारे में हज़ार बार सोचता है। इसकी वजह क्या है? क्या हमारे देश का प्रशासन इतना कमज़ोर है, इसका जीवित उदाहरण हैं सान्थी सौंदराजन।



शायद आपको नाम याद नहीं आरहा होगा। उसेन बोल्ट की रफतार से तो बच्चा-बच्चा वाकिफ होगा पर भारत को एशियाई खेलों में रजत पदक से गौरवांवित करने वाली सान्थी सौंदराजन को कम ही लोग जानते हैं। सान्थी ने अपने वतन का गौरव बढ़ाने के लिए अपनी गरीबी से लड़कर एशियाई खेलों में पदक हासिल किया पर उनको इसका सिला अपमान के रूप में मिला।



गौरतलब है कि सान्थी का पदक उन पर द्विलिंगी होने के आरोपों के बाद छीन लिया गया था। इन आरोपों के बाद सान्थी का जीना दूभर होगया। उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पर उनकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आया, ना जनता ना प्रशासन।



सभी इल्ज़ामो से तंग हो चुकी सान्थी ने सितंबर 2009 में आत्महत्या करने का प्रयास किया था। पर खुशकिस्मती से वो बच गईं, शायद और अपमान झेलने के लिए। अगर वो किसी और मुल्क के लिए दौड़ी होतीं तो उन्हें ऐसी मानसिक प्रताड़ना नहीं सहनी पड़ती।



ऐसे ही एक और प्रकरण पर नज़र डालें तो दूसरे देशों में हालात विपरीत दिखाई देते हैं। दक्षिण अफ्रीका की धावक केस्टर सिमेन्या का विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जीता स्वर्ण पदक द्विलिंगी होने का आरोपों के बाद छीन लिया गया था। उनके द्विलिंगी होने की खबर के मीडिया में लीक होते ही दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने सिमेन्या की गोपनीय बात के आम होने से नाराज़ होकर तीसरे विश्व युद्ध की घोषणा कर दी थी।



यही नही सिमेन्या ने भी अंतरराष्ट्रीय असोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन्स को रिपोर्ट लीक होने के बाद उसे कोर्ट में घसीटने की धमकी दी थी। पर ऐसा करने का माद्दा भारत की सरकार नहीं दिखा सकती है। हमारे यहां तो सारा दोष खिलाड़ियों पर मढ़कर उन्हे भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है।



भारतीय क्रिकेटरों पर जब जब कोई आंच आई है क्रिकेट बोर्ड ने हर बार उनका बचाव किया है, फिर वो चाहे सौरव गांगुली पर बैन लगाने का मामला हो या राहुल द्रविड़ पर गेंद से छेड़छाड़ का केस।
पर अन्य खेलों में ना संघ सामने आता है ना सरकार। ऐसे में मेहनती खिलाड़ी क्या करें, सरकार के जागने का इंतज़ार या ईश्वर से दुआ। सान्थी प्रकरण के बाद हर खिलाड़ी आज यही सोच रहा है- काश मैंनें क्रिकेट को चुना होता।

सचिन हैं कमाल के, कुछ सीखो इनसे

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर को दिग्गज क्रिकेट की यूनिवर्सिटी कहने लगे हैं, लेकिन शायद उनके समकालीन खिलाड़ियों को इस बात का ऐहसास नहीं होता। वर्ल्डकप में दो शतक लगाकर सचिन ने ये दिखा दिया है की सिर्फ ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से ही बड़े स्कोर नहीं बनाए जाते, बल्कि स्थिति को समझकर धीरे-धीरे पारी को जमाया जाता है।


इस वर्ल्डकप में बड़ा स्कोर बनाने का फंडा है ओपनिंग बल्लेबाजों का अच्छा प्रदर्शन। लेकिन अधिकतर टीमों के सलामी बल्लेबाजी पॉवरप्ले में ताकत दिखाने के फेर में सस्ते में आउट हो रहे हैं। फिर चाहे वो पाकिस्तान हो या भारत सभी का एक सा हाल है।


क्या किया सचिन ने


सचिन ने वर्ल्डकप में अबतक दो शतक लगाए हैं। ये शतक भी इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी दिग्गज टीमों के विरुद्ध आए हैं। सचिन ने चौके से आगाज करने के बजाए कमजोर गेंदों का इंतजार किया और उसके बाद धीमे-धीमे अपनी पारी को बनाया।


इंग्लैंड के खिलाफ लगाए सैकड़े का उदाहरण लें तो सहवाग और तेंडुलकर की बल्लेबाजी में अंतर साफ नजर आ रहा था। जहां एक ओर वीरेंद्र सहवाग ने पहली ही गेंद से आक्रामक रुख अपनाते हुए चौका लगाया और जल्दी-जल्दी रन बनाने के चक्कर में 35 रन बनाकर आउट हो गए। सहवाग अच्छी शुरुआत करने के बाद उसे बड़े स्कोर में तब्दील नहीं कर सके।


वहीं दूसरी ओर पिच को भांपते हुए सचिन ने एक और दो रन लेने से शुरुआत की। कमजोर गेंद देखकर उस पर चौके भी लगाए। लेकिन वो कभी भी किसी हड़बड़ी में नहीं दिखे। तेंडुलकर ने अपना रौद्र रूप मैच के 29वें ओवर में दिखाना शुरु किया। इस ओवर में सचिन ने लगातार गेंदों पर दो चौके जमाए। सचिन ने पहला छक्का 36वें ओवर की चौथी गेंद पर लगाया।


तेंडुलकर ने इंग्लैंड के खिलाफ शतक के लिए लगभग तीन घंटे क्रीज पर बिताए। नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में भी सचिन ने तीन घंटे से भी अधिक का समय बिताया। सचिन ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शतक में तीन छक्के और आठ चौके लगाए।


इस वर्ल्डकप में अबतक हुए 35 ग्रुप मुकाबलों में पहले विकेट के लिए कुल आठ शतकीय पार्टनरशिप हुई हैं। इसमें से भी श्रीलंका के उपुल थरंगा और तिलकरत्ने दिलशान ने 250 रन से अधिक रन जोड़े थे। और ऑस्ट्रेलिया की सलामी जोड़ी एक मात्र ऐसी जोड़ी है जिसने अबतक दो बार 100 रन से ज्यादा की पार्टनरशिप की है।


इस वर्ल्डकप की शतकीय ओपनिंग साझेदारी इस प्रकार से हैं-


एंड्रयू स्ट्रास और पीटरसन - इंग्लैंडवाटसन और हैडिन - ऑस्ट्रेलियास्मिथ और गेल - विंडीजगुप्टिल और मैक्कुलम - न्यूजीलैंडउपुल थरंगा और दिलशान - श्रीलंकाब्रेंडन टेलर और चकबावा - जिम्बाब्वेसहवाग और तेंडुलकर - भारतवाटसन और हैडिन - ऑस्ट्रेलिया


ऑस्ट्रेलिया ने समझा फंडा


अब तक सलामी बल्लेबाजी में सबसे अच्छा प्रदर्शन ऑस्ट्रेलियाई टीम का रहा है। इस टीम के ओपनर शेन वाटसन और ब्रेड हैडिन ने टूर्नामेंट में दो बार 100 रन से ज्यादा जोड़ चुके हैं। पहले न्यूजीलैंड के खिलाफ और उसके बाद कना़डा के विरुद्ध दोनों ने शतकीय साझेदारी निभाई।


जिम्बाब्वे के विरुद्ध अहमदाबाद में हुए मुकाबले में दोनों बल्लेबाजों ने पिच को समझते हुए धीमी बल्लेबाजी की और 10-12 ओवर होने के बाद गेंदबाजों पर हमला बोलना शुरु किया था।

गद्दार खिलाड़ियों के बीच फंसा एक मासूम हैदर

वो देश से गद्दारी कर मैच फिक्सिंग में नहीं फंसना चाहता। वो चाहता है कि क्रिकेट से भ्रष्टाचार खत्म हो जाए। वो अपने वतन के युवा खिलाड़ियों को फिक्सिंग की फांस से बचाना चाहता है। उसे खुद की जान से ज्यादा परिवार और देश के नाम की चिंता है। फिर भी पाकिस्तान सरकार ने उसे बीच मझधार में अकेला छोड़ दिया।

यहां बात हो रही है पाकिस्तान के युवा क्रिकेटर जुल्करनैन हैदर की। 24 साल के हैदर पिछले डेढ़ साल से सटोरियों से खुद को बचाने के प्रयासों में लगे हुए हैं। उन्होंने घरेलू क्रिकेट में फिक्सिंग की पेशकश को ठुकराया तो उन्हें कप्तानी से हटा दिया गया। इसलिए शायद इस बार उन्होंने किसी प्रकार का खतरा ना मोल लेते हुए किसी को बिना बताए दुबई से लंदन जाना ठीक समझा।

साल 2007 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने वाले हैदर ने अपने पदार्पण टेस्ट मैच की आधी राशि पूर्व कप्तान इमरान खान के कैंसर हॉस्पिटल की ट्रस्ट में दे दी थी। यहीं पर हैदर की अम्मीजान की मृत्यु हुई थी। उस समय जुल्करनैन महज 12 साल के थे। वर्तमान में उनके पिता लीवर की बीमारी से अस्पताल में जूझ रहे हैं।

जुल्करनैन ने में अपने पहले और अबतक खेले एकमात्र टेस्ट में शानदार 88 रन की पारी खेली थी। लेकिन इसके बाद उन्हें मौका ही नहीं दिया गया। वनडे में तो उन्हें तीन साल तक परखा तक नहीं गया। हैदर ने साल 2007 में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच ट्वेंटी-20 खेला था। जुल्करनैन ने इसके बाद से तीन टी 20, चार वनडे और एक टेस्ट मैच खेले हैं। हैदर ने चारों वनडे हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेले थे।

दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध चौथे वनडे में हैदर ने सटोरियों का आग्रह ठुकराते हुए पाकिस्तान के लिए मैच जिताऊ प्रदर्शन किया था। इसके तुरंत बाद उन्हें धमकियां मिलने लगी जिससे तंग आकर हैदर किसी को बिना सूचित किए दुबई से लंदन के लिए रवाना हो गए।

जुल्करनैन मोहम्मद आमिर, सलमान बट्ट और मोहम्मद आसिफ जैसे गद्दार खिलाड़ियों के बीच एक मासूम फूल से नजर आते हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी खिलाड़ी ने सटोरियों को इंकार कर सार्वजनिक रूप से उनके खिलाफ मोर्चा खोला है। हालांकि उनका तरीका थोड़ा गलत था। जुल्करनैन यदि सीधे आईसीसी के पास पहुंच जाते तो शायद उनकी छवि और बेहतर होती।

लेकिन हैदर द्वारा गलत तरीके से उठाया गया ये एक सही कदम है जिसका समर्थन पूरे क्रिकेट जगत को करना चाहिए। ये एकदम सही मौका है जब क्रिकेट की गंदगी को साफ किया जा सकता है। हालांकि सलमान बट्ट, आसिफ और आमिर को निलंबित कर आईसीसी ने थोड़ा भ्रष्टाचार कम किया है, पर फफूंद बहुत गहरी है और इसका साफ होना जरूरी।

Friday, November 23, 2007

इंडिया विन्स ट्वेन्टी-२० वोर्ल्द्कुप। हुर्रह!!!!!! इंडिया विन्स नेहरू कप फॉर थे फर्स्ट टीम। वहत? नेहरू कप स्तान्ड्स फॉर वहत? दो यू क्नो युवराज हस ब्रोकें उप विथ किम शर्म। नो वन एवें बोठेर्स फॉर ओथेर स्पोर्ट्स और रठेर फॉर स्पोर्ट्स। स्पोर्ट्स इन इंडिया इस जुस्त क्रिकेट। थिस क्रिकेट फनाटिक नेशन सीस ओनली क्रिक्केतेर्स अस ठिर हेरोएस। ओथेर स्पोर्त्स्प्लायेर्स वर्क जुस्त गोएस इन वें। व्हें अ क्रिकेट तें वीं थे रेवार्ड्स अरे नुमेरोउस, बुत व्हें हॉकी प्लायेर्स वीं एशिया कप थे डोंट एवें गेट थे रेवार्ड्स एकुँल तो थे अमौंत स्पेंट इन ट्रेनिग फॉर थे स्पोर्ट। एवें वर्ल्ड चंप विश्वनाथन आनंद नीड्स अ मीडिया काम्पैग्न तो हवेया स्पेकुलातिवे रेसिवे ओं रेतुर्निंग बेक। वही? वही? वही तेरे इस सुच अ स्टेप-चाइल्ड त्रेअत्मेंट विथ ओथेर स्पोर्ट्स? कोम्मोमं वी अरे थे गेंक्स्त ऑफ़ इंडिया वी कैन गिव क्रेडिट तो ओथेर स्पोर्ट्स तू। काम लेट्स जों हैण्ड तो गिव थे क्रेडिट नीदेद बी ओथेर स्पोर्ट्स तू & एन्कोउरागे थेम अल्सो अस थे अरे अल्सो तेरे तो मैन्तैन ऑउर डिग्निटी.